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Wednesday, 28 December 2016

कविता: ' सोचता हूँ '

सोचता हूँ  - (रजत दीक्षित)


सोचता हूँ कुछ लिख दूँ तुम पर,
जो बता पाये तुम्हारी छाप को।

सोचता हूं फिर से एक बार कोशिश करूँ,
पर थका सा हूँ मैं पुरानी असफल कोशिशों से।
किसी को पाना और पाकर बिछड़ना दस्तूर है ज़िन्दगी का,
फिर क्यों मैं दस्तूर को बदलने पर अड़ा हूँ?
पत्थर पर अमिट निशान की तरह होते हैं भाव,
उन अनगिनत निशानों को मिटाऊँ कैसे?

सोचता हूँ कुछ लिख दूँ तुम पर,
उकेर दूँ तुम्हे कागज़ पर अपने शब्दों से।

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